मेरी पहचान
मेरी पहचान
एक दिन अकेले अचानक मुझे कुछ याद आया। मैं क्या थी ,क्या हूँ इसके निर्णय का सुरूर छाया मैं दिए की रौशनी हूँ या हूँ अँधेरे की काली छाया एक दिन अकेले.............. जब मैंने शुरू किया ख़ुद को खोजना तो मैंने स्वयं को जाना,और पहचाना कि मैं हूँ एक 'नारी'जिसके जीवन का नाम है लाचारी जिसे मारते है लोग कोख में और ख़ुद को कहते है देवी का पुजारी यही है कड़वी सच्चाई और यही है सदियों से चलते आया एक दिन अकेले.............. लेकिन अब मैंने तय कर लिया है कि नहीं डरना है मुझे इन पापियों से ,जो है अत्याचारी, व्यापारी और साथ में बलात्कारी भी। जो लुटती है नारी के मन की ताक़त और कमज़ोरी भी और दे जाती है दिल को एक सन्नाटे की छटपटाहट और बन के रह जाते है हम भावनाओं की मारी । लेकिन सुन लो ! ऐ दुनिया वालों अब जीतेंगे हम और हारने की है तुम्हारी बारी। बहुत कुछ खोने के बाद ऐसा विश्वास है ख़ुद में जगाया बस एक दिन अकेले अचानक मेरा अस्तित्व मुझे नज़र आया मैं दिये की ही रौशनी हूँ नही हूँ अँधेरे की काली छाया एक दिन अकेले अचानक मुझे ये याद आया।