इन्हें कैसे समझूँ
इन्हें कैसे समझूँ
भैया, मैं तो समझती हूँ,
बचपन से आपकी समझदार गुड़िया जो हूँ,
पर इस दिल को कैसे समझाऊँ,
जो किसी भी रोहित और
कैप्टन रोहित की बहन होने,
के फर्क को समझने को तैयार नहीं।
भैया, मेरी आँखे भी
आज जाने क्यों बावरी हो गयी हैं,
आपका वही मुस्कुराता चेहरा
देखने की जिद पर अड़ी है।
मेरे कान सुबह से अनगिनत बार
'कैप्टन रोहित अमर रहे',
सुन चुके हैं,
पर भैया उनके पास
मेरे जितना दिमाग़ नहीं है ना,
वो तो आपकी हँसी सुनने को
तड़प रहे हैं।
भैया मुझे याद है
जो आपने कहा था,
मुझे याद है कि
अगर आपको कभी
तिरंगे में लिपटा देखूँ,
तो अपनी भावनाओं के
समुन्द्र पर देशभक्ति और
गर्व का बांध बाँध दूँ,
पर भैया वो बाँध
बार-बार टूट रहा है.
भैया, ये सब मेरी बात
नहीं मान रहे,
आपके पास तो
हर चीज का जवाब होता है ना,
एक बार ये तो बता दो कि,
इन सबको कैसे मनाऊँ,
कैसे समझाऊँ।।