एक मुट्ठी ख्वाहिशें
एक मुट्ठी ख्वाहिशें
एक मुट्ठी ख्वाहिशें
संकोची जिगर
और तुम्हारी देहरी
चली आई थी ना
हाथ तुम्हारा थामे
एक सोच के साथ
यह अजनबी हाथ
जो थामा हैं मैंने
उम्र भर को
उम्र भर जीने के लिए
क्या देगा साथ ?
और आज मुड़ कर देखती हूँ तो
मीठी सी मुस्कान तैर जाती हैं
मेरे लबों पर
तुम अजनबी कहाँ थे
तब भी
अजनबियों से बात करना
मेरी आज भी आदत नही
पहली नजर में ही
पहली छुअन से ही
तुम तो मेरे अपने थे
तभी तो चली आई थी
बरसों पहले
तुम्हारा हाथ थामे
इस आँगन में
जहाँ मैंने
अपने सपने बोये थे
छोटे से घर के
खुशियों के डर के
और तुमने उनको
सींचा
अपने प्यार और विश्वास से
आज इसकी इमारत तैयार हैं
हमारे स्नेह की स्वप्निल सी
झिलमिल आंगन में
बरसती खुशियों की
तुम आज भी वैसे ही हो
जैसे २५ बरस पहले थे ......
मासूम निश्चल सच्चे से
दिल से थोड़े बच्चे से
हां
मैं ही कुछ कुछ बदल गयी हूँ .....
तुम सी होकर
हो गयी हूँ
थोड़ी थोड़ी अपनी सी भी !!