तेरी आदत है हमें !
तेरी आदत है हमें !
तू नहीं पास मेरे मगर
ऐसा भी नहीं की अकेलेपन
की आदत है हमें
एक तू ही तो है जिसकी
सोहबत पसंद है हमें
एक तेरी कुर्बत से ही तो
हिज़रत है हमें
सर सज़दे में झुका है
ना समझना कि अड़ने
की आदत है हमें यूँ इबादत
करने की तो आदत है हमें
यूँ तो कई आफ़ताब है
इस जहाँ में मगर एक
उसी सितारे से मोहब्बत
की इजाज़त है हमें
ठूँठ की तरह अकड़
कर नहीं रहते हरे-भरे
दरख़्त जैसे मेहरबां लहज़े
की तो आदत है हमें
हर एक दर पर सर
नहीं झुकाते पर जिस
दर सर झुकाते है फिर
उसी दर पर सकूनत है मुझे
कई जन्मों तक माँगा है
तुझे उस ख़ुदा से तभी तो
मयस्सर तेरी कुर्बत है हमें !