ख़्याल
ख़्याल
तुम्हारे पहलूँ में रखकर दिल अपना
नज़रों का पुल बनाना मुमकिन नहीं।
मगर ख़त, ख़बर, ख़्याल के ज़रिये
तुम तक पहुँचता तो हूं।
तुम भी, ढूंढ ही लेते हो मेरे सामने वाली
खाली कुर्सी को और एक नादान ख़्याल
बनकर बैठ जाते हो।
हमें मालूम भी नहीं चलता मगर हम ख्यालों की
दुनिया में सारा दिन गप्पे मारते हैं।
तुम्हारा वो हिस्सा मेरे पास रह जाता है
और मैं थोड़ा सा तुम्हारे पास
उम्मीद है तुम भी मुझे संभाल कर रखते होंगे।