चंद लकीरें
चंद लकीरें
चंद लखीरें जो तू नवाजे मेरी हथेली पे,
पोंछ दूँ ये कालिख मैं, मेरी तकदीर से,
मेहनत ही सब्र का फल देती मीठा,
मुझे भी दे हिम्मत और आजमाले,
तेरे दरवाजे पर खड़ा एक फकीर ही समझ,
नहीं मुझे खवाहिशों का आडम्बर है,
बस कर सकूं फक्र से सर ऊँचा,
यही तुझसे फरियाद है।