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नफ़रत की अंधेरी गलियाँ

नफ़रत की अंधेरी गलियाँ

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नफ़रत के इन अँधेरी गलियों में हूँ खोते चले गए,

इन्साफ इन्सानियत के सारे मायने हम भूलते गए,


हालात के हर एक चौराहे पर हम अटकते रह गए,

सोचने समझने पूछने की राह से बेहद दूर होते गए।


मज़हब कैसे दिलों में बेजान लकीर खींचता जाए,

ज़बान कैसे अवाम को अलग-थलग करता जाए,


जातपात लोगों को गुमराह गुमनाम करता जाए,

जल्द नफ़रत के अंधेर गलियों से छूट मिल जाए।


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