कविता
कविता
दशो दिशा में देखो दीपों की महफिल सजी
अंतर में सबके शहनाई बजी।
प्रकाश ज्योति की लालिमा है आसमान में
मन-मन में खिले रोशनदान सजाती।
क्यों न हम सत्य के साथ हाथ मिलाये
और अपने मन में जला ले ज्योति।
सहस्त्र किरणों की आभा समाई
घने तिमिरों पर भी है मात कराती।
झिलमिल प्रकाश का दीप लगाकर
हम ज्ञान की जगाले ज्योति।
भावपुष्प को दिल में हम सजाये
बिखर जाये रंगोली की भाँति।
आकांक्षा को समेटकर मन मंदिर में
हम धीरज की करें आरती।
दिवाली का स्वागत अमावस्या को
दिशा-दिशा में फैले व्यंजनों की व्याप्ति।
हर्ष भरे मन से मनाये हम दिवाली
आयेगी आनंदमई लक्ष्मी घर में दमकती।