क्या हमको भुला पाओगी
क्या हमको भुला पाओगी
बना ह्रदय को पत्थर, मन मंदिर में नई मूरत लगा पाओगी।
सच कहना, भूल गई तुम सब, क्या हमको भुला पाओगी।
चांदनी चद्दर तले जब तुम सिहांसन पर विराजित होगी।
होंगे दीदार तेरे रूप के, जिसका हम सज़दा पाएंगे।
जाग उठेगा जाना पहचाना मितव्ययी तुम्हारा।
प्रेम पत्र देना था जिस लिफ़ाफ़े में, उसमे शगुन दे आएंगे।
देख कर हमको वहां, जब आंसू ना रोक पाओगी।
पूछेगा बगल का महाराजा, कौन है, क्या उसको बता पाओगी।
सच कहना, भूल गई तुम सब क्या हमको भुला पाओगी।
आश्रय की अभिलाषा लिए वो ख़ुद को, तुम में तलाशेगा।
होगा अपराध जब-जब वो तुझसे, तुझको छांटेगा ,
जब वो प्रेम पथिक तुम्हारे वक्ष पर इंतज़ार में
ज़ुल्फ़ों से खेलता, आँचल की बंदिशें काटेगा।
विचलित हो जाएंगी ऊर्मियां ,
गजरे, झुमके , न यथावत होंगे।
होगा कुछ ऐसा दोनों के दरमियाँ,
कि महबूब के जज़्बात आहत होंगे।
बिखरी होगी मूरत संगमरमर की, क्या उसको सिमटा पाओगी।
होगा एक तरफ़ा ये संगम, क्या उसमे ख़ुद को रमा पाओगी।
सच कहना, भूल गई तुम सब, क्या हमको भुला पाओगी।
भोर में जब मेरे प्रणय की किरणें तुम तक पहुचेंगी
दिखेगा तुमको एक अक्स नया, फिर तेरी आँखे मुझको सोचेंगी ।
माना उस रोज होगा तुझ पर यौवन नया, पर श्रृंगार न तुमको भाएगा ,
खो जाएगी वो पगली लड़की, न सपनों में पगला आएगा।
फिर जब तुझको सरकार पुकारेंगे, तुम रंग रोगन में लग जाओगी,
पूछेगी सितारों की पगडंडी, क्या मुझमे सिन्दूर सजा पाओगी।
सच कहना, भूल गई तुम सब, क्या हमको भुला पाओगी।
फिर कुछ तथाकथित अपने, तुमसे मिलने आएंगे
तुम हंसोगी और वो भी झूठे से मुस्काएंगे
उपहारों की बारिश होगी, पर ये सावन न तुझको भाएगा
याद आएंगे बाहों के झूले, पर कोई न तुमको झुलाएगा ।
पूछेंगे कलाई के कंगन, रुठ के, क्या हमको खनका पाओगी।
व्यथित होगी तेरी धड़कनें, क्या उनको समझा पाओगी।
सच कहना, भूल गई तुम सब, क्या हमको भुला पाओगी।