मोती सागर से चुनना होगा
मोती सागर से चुनना होगा
जब दिन में होती रात मिले,
आँसू में तुमको प्यास मिले,
जब पर्वत बीच रवानी हो,
नयनों में बहता पानी हो,
तुमको जब पथ अंजान लगे,
घर के दीपक बेजान लगें,
तब समझो तुमको चलना है,
मोती सागर से चुनना है ।
जब होठ में फफक पुरानी हो,
नयनों में शफक रवानी हो,
जब रात में आँसू बहता हो,
मन बाजू थाम ये कहता हो,
जब दर्पण चेहरा बिसरा दे,
प्रतिबिम्ब उसी का चेहरा दे,
तब समझो तुमको लड़ना है,
अर्जन अमि का फिर करना है ।
जब नथुनों में आग-सी जलती हो,
जवानी फूट मचलती हो,
जब पानी प्यास बढ़ाता हो,
पर्वत राही को चढ़ाता जो,
जब रोम-रोम में दृढ़ता हो,
बिन बाती दीपक जलता हो,
तब समझो तुमको जलना है,
खुद का दीपक फिर बनना है ।
जीवन में एक कहानी हो,
सांसे बहता-सा पानी हो,
रातें दीपक को बुझा जाएँ,
अंधेरे थप थपा सुला जाएँ,
नयनों को नींद न भाती हो,
पलक मिर्च-सी जलाती हो,
तब समझो तुमको चलना है,
मोती सागर से चुनना है ।
जब पथ मंजिल को बिसरा दे,
जमीन तुमको ना आसरा दे,
पैरों के छाले पीड़क हों,
शूल धरती के उत्पीड़क हों,
नथुनों से आग निकलती हो,
सांसे निष्प्राण मचलती हों,
तब भी तुमको चलना होगा,
मोती सागर से चुनना होगा ।
जब ह्रदय अग्नि से पट जाए,
मंजिल तक भूख सिमट जाए,
रुकना कदमों को सताता हो,
चलना खुद गति बढ़ाता हो,
असफलता निष्फल हो जाये,
हौसलों में जो स्पंदन हो जाये,
तब कहता हूँ मंजिल दूर नहीं,
रुकने को मैं मजबूर नहीं ।
जब घोर अंधेरा पथ पर हो,
तन विदीर्ण लहू से लथपथ हो,
सरसर करते सर बढ़ते हों,
तन को विदीर्ण कर गढ़ते हों,
जब समर प्रबल बलशाली हो,
तब कहूँ यह जीत निराली हो,
तब नमक घाव पर मलना होगा,
मोती सागर से चुनना होगा ।
जब पानी अग्नि लगाता हो,
बारिश में मन कुम्हलाता हो,
पैरों के नीचे अम्बर हो,
धरती गगन सब सम्बल हो,
भुजबल से पर्वत डर जाए,
तूफ़ान से अगर वो लड़ जाए,
तब समझो जीत हमारी है,
मंजिल अब देखो तुम्हारी है ।
जब बिस्तर तुमको भा जाए,
सिलवट में उंगली आ जाये,
मन बिन पांखे उड़ जाता हो,
तन पर विषाद छा जाता हो,
घनघोर घटा हो जाती हो,
धड़कन तुमको डराती हो,
तब समझो तुमको चलना है,
सागर से मोती चुनना है ।
जब मन में हूक-सी उठ जाये,
कुछ करने से तन ऊब जाये,
ये जग सारा प्रपंच लगे,
दुनिया एक रंगमंच लगे,
साथी का साथ अखरता हो,
सांसे लेने से मन डरता हो,
तब समझो अम्रत पाना है,
मोती सागर से लाना है ।
जब मन थर-थर-थर काँप उठे,
डमरू डम-डम-डम बाज उठे,
काल क्रोध जब जगता हो,
प्रचण्ड वेग लहू गिरता हो,
नर मुंडो से धरती पट जाए,
भावना कन्दराओं में छुप जाए,
तब समझो जीवन सुप्त हुआ,
मोती सागर से लुप्त हुआ ।