इष्ट
इष्ट
मैंने चाहा था
कि तुम हो जाओ कृष्ण,
कि तुम्हारे प्रेम में समाहित हो जाऊँ मैं,
कि मैं तुम, और तुम मैं हो जाए !
मैंने माँगा था
समर्पण का सुख,
कि स्थूल से सूक्ष्म में परिवर्तित हो जाऊँ मैं,
कि रचना और रचयिता का भेद मिट जाए !
मैं प्रार्थी थी
पुस्तकों की कथाओं सी,
कि महानता का एक विशेषण बन जाऊँ मैं,
कि मेरी छोटी सी कहानी अमिट हो जाए !
सब सच हुआ,
तुम बन गए कृष्ण,
ओढ़ लिया देवत्व,
भक्ति में ढूँढ़ लिया रस,
ईश्वर बन गए तुम !
और मैं बन गई मीरा, राधा होने के स्वप्न में !