उड़ने का ख्वाब
उड़ने का ख्वाब
मैं जिंदगी में कुछ ना बन सकीं,
इसलिए खुद से ही निराश थीं।
क्या होगा मेरा आगे जाकर,
हाथ पर हाथ रखे हताश थीं।
फिर सोचा मेरा कुछ नहीं होगा,
परिवार पर भी मैं एक बोझ हूं।
कोई अस्तित्व नहीं है अब मेरा,
बिना कारण खुदा की खोज हूं।
देखा सहसा पास ही कतार में,
चीटियां कुछ लेकर जा रही थी।
अपनी वजन से दो से तीन गुना,
भारी वजन सभी उठा रही थीं।
बौनी है पर साहस काफी लंबी है,
उनको देखकर यही लग रहा था।
पर नहीं थें ना ही उड़ सकतीं थीं,
अंदर का परिंदा मचल रहा था।
मैं जुट गयी काम में उस दिन से,
एक एक कर सारा ख्वाब बनाया।
मेहनत किया चीटियों के जैसे,
ख्वाबों को एक हकीकत में सजाया।
मुझे सम्मानित करने के लिए,
सभी के समक्ष बुलाया गया है।
बौनी उड़ान देखकर मैंने भी
आसमां में उड़ने का ख्वाब सजाया है।