एक कहानी
एक कहानी
आओ कहानी दोहराते हैं, इक माँ और इक बेटे की,
बिछड़ गए तकदीर के कारण, कुछ सच्चे कुछ झूठे की।
नाजों से पालूँगी बच्चा, कसम ये जिसने खाई थी,
गुम हो जाने पर बेबस माँ फूट फूट कर रोई थी।
कुछ ना माँगू भगवन तुझसे मेरी खाली झोली में,
बस सुख देना बेटे को, हो जहाँ कहीं खुशहाली में।
संगीत ही था उसका जीवन. जहाँ गया वो जिसके पास,
स्वर से ताल मिलकर पंडितजी का शिष्य बना वो खास।
पंडितजी को ना थी संतान, समझ के बेटा किया बड़ा,
संगीत का उत्तराधिकारी हुआ पैरों पे यूँ खड़ा।
यूँ ही जमी थी महफ़िल इक दिन ऐसे ही किसी गाँव में,
जहाँ जन्म ले लिया था उसने उस ममता की छाँव में।
पहचाना माँ ने उसको था हाथ में कंकण गले निशाँ,
खुद चलकर पैरों पर आया, ढूँढा जिसको दसों दिशा।
हुई लड़ाई माँ पंडितजी में, बच्चे पर हक़ मेरा,
निर्णय लेना था बेटे को, द्विधा है मन, प्रभू खेल है तेरा।
सदमा पहुँचा पंडितजी को, गिरे अचानक धरती पर,
खुद को सँभाला, कहने लगे, तू जा, पर आना अरथी पर।
पंडितजी का हाल जो देखा, बहने लगा आँखों से नीर,
विवश हो गई माँ फिर से, नियती से चल गया दूजा तीर।
माँ ही कहने लगी उन्हीं से, बेटा रख लो अपने पास,
संगीत ही है जीवन उसका, सुखी देखना मन की आस।