जज़्बातों की बानगी
जज़्बातों की बानगी
जज़्बातों की बानग़ी में जो बहे जा रहे हो तुम
यकीं मानो आने वाले तूफ़ान से टकरा रहे हो तुम
ये मौसम बहारों के कब मुस्तकबिल किसी के हुए हैं
पतझड़ के मौसम को क्यों फिर बुला रहे हो तुम
मत रखना ये भरम कि मोहब्बत के फूल कभी मुरझाएंगे नहीं
कागज़ के फूलों से खुशबू की उम्मीद क्यों लगा रहे हो तुम
आने वाले कल को हो सके तो देख लो, ज़िन्दगी के छल को हो सके तो देख लो
अपनी अलहदा सी ख्यालों की दुनिया क्यों बसा रहे हो तुम
दिल की सुनना ना कभी, ये तो कभी भी दगा दे जाएगा
क्यों बेमतलब की उलझनों में यूँ अपनी मासूम सी जान फंसा रहे हो तुम
जज़्बातों की बानगी में जो बहे जा रहे हो तुम
यकीन मानो कि आने वाले तूफ़ान से टकरा रहे हो तुम