वर्तमान परिवेश
वर्तमान परिवेश
ये नौनिहाल हैं जो आगे बढ़ रहे हैं
नए हाथ से वर्तमान गढ़ रहे हैं
उन्मुक्त आँगन की इन्हें दरकार है
नानी दादी के सानिध्य की पुकार है
स्वप्न में इनकी भी है मधुर कहानी
परिवेश ने जाने क्यों बदले की ठानी
वक्त की सीढ़ियों पे निरंतर चढ़ रहे हैं
ये नौनिहाल हैं जो आगे बढ़ रहे हैं
नए हाथ से वर्तमान गढ़ रहे हैं
विकट परिस्थिति आज इनके पास है
रिश्तों में पनपी दूरियों का अहसास है
हो रहे हैं एक घर के हिस्से कई
काँपते कलेजों में उपजी धड़कन नई
द्वेष से भाई भाई झगड़ रहे हैं
ये नौनिहाल हैं जो आगे बढ़ रहे हैं
नए हाथ से वर्तमान गढ़ रहे है
उगल रहा है ये गगन भी आग अब
सिमट रहे है संस्कारों के फाग सब
युग मांग रहा है हमसे मिसाल कोई
काट रहे है वो फसल जो हमने बोयी
पतन की गाथाएँ निश दिन पढ़ रहे हैं
ये नौनिहाल हैं जो आगे बढ़ रहे हैं
नए हाथ से वर्तमान गढ़ रहे हैं
एकाकीपन बचपन इनका छिन रहा
मासूमियत भोलापन दिन गिन रहा
पर आशाओं की डोर थामे उड़ रहे हैं
नयी सुनहरी राह की ओर मुड़ रहे हैं
ये नौनिहाल हैं जो आगे बढ़ रहे हैं
नए हाथ से वर्तमान गढ़ रहे हैं