गर्मी
गर्मी
नित्य भयावह हो रही, बढ़ती गर्मी धूप
जला-जला कारी करे, गोरी का ये रूप।
शहर गाँव में हो रहा, इतना तेज विकास
वृक्ष काटकर बन रहे, पत्थर के आवास।
ताल-तलैया पट गया, उजड़ गया खलिहान
जीव-जन्तु अब कर रहे, होकर विकल विहान।
हरा भरा था झूमता, गोरी तेरा गाँव
जलती भू अब चल सकें, कहीं न नङ्गे पाँव।
आता सावन झूमके, होती थी बरसात
अब बारिश के मास में, नहीं रही वो बात।
चिल चिल करती धूप है, दिन भर जले किसान
दशा बड़ी दयनीय है, निगल रही है जान।
रोज-रोज अब मर रहा, था हलधर धनवान
रोटी दोनों जून की, तरस रहा भगवान।