डायन
डायन
यह जो बालों को बिखेरे
मैले-कुचैले कपड़े पहने
महीनों से नहाई नहीं
मैल से भरे गन्दे और लम्बे नाख़ूनोंवाली
औरत जा रही नंगे पाँव
ज़रा इससे दूर रहो बच्चो!
क्योंकि यह डायन है
बच्चों को खा जाती
यह जो लम्बा-सा घूँघट काढ़े
पाँव में पहने चाँदी की पायल
करती छन-छन
पिछले कई बरसों से
मेरे ही बेटे के साथ
एक कमरे में सोते हुऐ
अकेली ही घूमती
घर के हर कमरे में,
आँगन में और बरामदे में
ऐ बच्चों! दूर रहो-
स्त्री वह बाँझ है,
डायन है;
टोटका तुम्हारे ऊपर कर देगी
खा जाऐगी तुम्हें!
ऐ लड़के!
उधर कहाँ जाते हो?
यह स्त्री बाँझ
नहीं है लेकिन
इसकी कोख बेटे से शून्य
अभिशापित है!
मेरे लड़के में तो
कोई कमी नहीं पर
यह दुष्टा पैदा कर रही है
हर साल लड़कियाँ ही
पिछले तीन बरसों से;
इसकी छाया तक से लड़कोंं!
तुम दूर रहो
क्योंकि यह डायन है,
लड़कों को देखते ही
ईर्ष्या की आग में धधक उठती
और उन्हें खा जाती!
उत्तर आधुनिकता के इस युग में
पुरुष वर्चस्व को खण्डित करती
उसके समकक्ष आ
उससे बेहतर अपने कार्यों को देती अंजाम
नऐ युग की यह स्त्री
अभी भी अभिशप्त
इस आज़ाद राष्ट्र में
कहे जाने को डायन!
बच्चे उसे देख
दूर से ही भयभीत हों
क्योंकि यह समाज
उन्हें पढ़ाता आया
उनके बचपन से लेकर आज तक यह-
कि जो इस्तरी हो जाती है डायन
वह ख़ून तलक पी जाती-
अपने ही बच्चों का,
बच्चों की सुरक्षा है
उससे दूर रहने में!