क्या यार लिखूँ
क्या यार लिखूँ
बैठा हूँ कुछ आज मैं लिखने,
सूझे ना क्या यार लिखूँ ।
ढेरों रंग में रंगा ये जीवन,
कैसे इसका सार लिखूँ ।
याद करूँ कभी मैं चंचल बचपन,
कभी यौवन की मस्ती फुहार लिखूँ ।
अनूभूति करूँ कभी मैं ममता माँ की,
कभी उसकी सीख भरी फटकार लिखूँ ।
महसूस करूँ कभी मैं प्रियतम की प्रीत,
कभी छूटा उसका प्यार लिखूँ ।
धरूँ कभी मैं धरा सा धीरज,
कभी क्रोध में उबला ज्वार लिखूँ ।
लिखता हूँ कभी
गान मैं विजयी,
कभी कुछ - कुछ
अपनी हार लिखूँ ।
ढेरों रंग में रंगा ये जीवन
कैसे इसका सार लिखूँ ?
सूझे ना क्या यार लिखूँ,
सूझे ना क्या यार लिखूँ...!