लौटा दो मुझे
लौटा दो मुझे
मुझे लौटा दो
मिट्टी, धरती
हरे जंगल - पहाड़
ठण्डे झरने
कल- कल बहती नदी
इसे लेकर ही जिन्दा रहूँगा
जहाँ तुम
देश की विकास के नाम
कल-कारखाने बनाये हो
शहर-नगर बसाये हो
बाँध और डैम तैयार किए हो
इन सबसे
मेरा पेट नहीं भर रहा
रुग्ण और बीमार आदमी में
बदल गया हूँ
बाजार - नगर में
भिक्षाटन कर
पेट भरने को बाध्य हो गया हूँ
इसलिए कह रहा हूँ
ले जाओ अपने
ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ
चौड़ी-चौड़ी सड़कें
बड़े-बड़े कल - कारखाने
मेरा घर, खेत - जमीन को
निगाली
तुम्हारे बड़े -बड़े बाँध
मैं पहले जैसा ही
जंगल-पहाड़ के
ऊँची-नीची मैदानों में
पुआल की झोपड़ी बनाकर ही
स्वाधीनता के साथ
रहने दो...!!!