तुम्हें माफ़ किया
तुम्हें माफ़ किया
बहुत भोली थी वो,
जल्द बातों में आ जाती थी सबके।
कान के कच्चे होते है ना कुछ, वही।
रिक्शे पे साथ बैठ दुनिया घूमने की बात करती थी वो।
और मै, किसी मोड़ पे उसके उतरने के डर से चुप रहता।
बाज़ार की चकाचोंध में अलग से चमकती थी वो।
और मैं उसके गुम होने के डर से उसका हाथ थामे रहता।
बेफिक्र बारिश की बूंदों से उलझ जाया करती थी वो।
और मैं सर्दी लगने के डर से उसे मौसमों से बचाता रहता।
बहुत नादान थी ,वादे करती थी और तोड़ देती थी।
और मैं उसके कहे लफ़्ज़ों की ताबीज़ पहनता रहता।
एक रात चली आयी थी रस्मों रिवाजों को छोड़ वो।
और मैं उसे सारी रात दुनियादारी की समझ देता रहा।
बड़ी-बड़ी मासूम आँखों मे, सवाल भर लाई थी
मैं तह दर तह सारे सवालों की सिलवटें सुलझाता रहा।
मेरे हिस्से का बचपन वो जीती रहे इसलिए
मैंने ओढ़ लिया उसके हिस्से का सारा तज़ुर्बा
वैसे,
जाने से पहले एक आखिरी बार आवाज़ तो सुना देते
मैं तुम्हे सहेज के तो रख लेता अपने दिल में कहीं।
खैर कहा न बहुत भोली थी वो
जल्द बातों में आ जाती थी सबके
कान के कच्चे होते है ना कुछ, वही।
चलो तुम्हें माफ किया।