जिसके पीपल की छांव तले
जिसके पीपल की छांव तले
इक लंबा अरसा बीत गया
उस चौबारे के सूनेपन में
जिसकी मिट्टी भाती थी
हमें ख़ूब अपने बचपन में
बहुत दूर का सफ़र हुआ यह
अब उस चौबारे को पाँव चले
तब ढेरों सपने पलते थे
जिसके पीपल की छांव तले
कितना लंबा सफ़र हुआ यह
क्या पाया क्या खोया है
वही फ़सल है बस अपनी
जिसको हमने न बोया है
थक हार के बैठें है जब भी
मन उस बचपन के गाँव चले
तब ढेरों सपने पलते थे
जिसके पीपल की छांव तले
उस मिट्टी में ही खेले थे
उस मिट्टी से ही फ़ैले हम
उस मिट्टी से ही साफ़ हुए
और उससे ही थे मैले हम
फ़िर से अब वह बारिश हो
जिसमें कागज़ की नाव चले
तब ढेरों सपने पलते थे
जिसके पीपल की छांव तले...।