आँखें
आँखें
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बेबस ये आँखें ऐसे,
नमी छिपा रही थी,
टूटे दिल की दास्ताँ,
बिनकहे बता रही थी।
तलाशा सुकुन अंधेरों में,
रातें भी ख़फ़ा हो रही थी,
धुंधले से फैले उजियारे में,
राहें यूँ जुदा हो रही थी।
वफ़ा खूब निभाते रहे,
साज़िशे यूँ हो रही थी,
था कुसूर सिर्फ इतना,
ख्वाहिशें बेहद हो रही थी।