अबके सावन
अबके सावन
सावन की रिमझिम फुहार,
तन पर जब से पड़ी हैं,
तोहे का बतायें सखी,
मन की बगिया खिली हैं ।
रोम-रोम होय पुलकित,
गाये मीठी मल्हारें कई,
जैसे पहली बार सजन से,
मिले सजनी कोई ।
हाथन चुरियाँ माथे पे,
बिन्दिया सजने को मेरे,
दिल की धड़कन,
धक-धक करने लगीं हैं ।
आये सजनवा मुद्दत बाद,
विदेशवा से घर मा,
इक ओर सजनी दूजे,
साजन बीच नदिया बही हैं ।
तरस गयीं अँखियाँ,
पिया से मिलन को ऐसे,
जैसे अब ये कारे-कारे,
बदरा नील गगन से बरसें ।