हाँ मैं डरता हूँ
हाँ मैं डरता हूँ
मैं अपने सारे जज़्बातों को
कलम के सहारे कागज़ पे दफनाता हूँ
सारे ज़ख्मों को राख में तब्दील करता हूँ
सारे दर्दों को वहीं छोड़ आता हूँ
हाँ मैं उन जज़्बातों से डरता हूँ !
पर वो दर्द फिर भी खत्म नहीं होता
गुमसुम रातों में फिर चला आता
फिर से उन्हे दफनाने की कोशिश करता हूँ
पुरानी डायरी से कुछ सफ़ेद पन्ने
फिर से फाड़ लाता हूँ।
दिल की गहराई से शब्द निचोड़ के
उन पन्नों को भिगोता हूँ
उनके लिए एक नया कफन फिर से तैयार करता हूँ।
उनसे छुटकारा पाने की नाकाम कोशिशें
हर रोज़ करता रहता हूँ
सारे जज़्बातों का क़त्ल करने की
साज़िशें आज भी रचता हूँ
हाँ मैं उन जज़्बातों से डरता हूँ !
अंधेरी रात में छत पे जाके
आँखें बंद कर लेता हूँ
मेरे टूटे हिस्सों के अटूट लम्हों पे
फिर से आँख फेर लेता हूँ।
चाहे ज़िंदगी भर के लिए न हो
पर एक पल के लिए ही सही
उन झूठों को सच मान लेता हूँ
उन सपनों से लौटकर आज भी जब
हकीकत में खुद को देखता हूँ
एक पल के लिए न जाने क्यूँ
खुद में कांप - सा जाता हूँ।
उन सपनों की दुनिया में फिर न जाने का
वादा जो खुद से करता हूँ
हाँ मैं उन जज़्बातों से डरता हूँ !