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अपनी हसरत भी क़्यामत की मै औरत

अपनी हसरत भी क़्यामत की मै औरत

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कैसी औरत की कहानी मै क़लम से लिखुं

किसकी औरत को बुरा आज मै तुमसे बोलुं

माँ भी औरत है मेरी जिसने मुझे जन्म दिया

कैसे रूस्वाई को औरत की मै फितरत बोलुं


हर खूशी मुझको दिया आज इसी औरत ने

दिलको धडकन भी दिया मेरे इसी औरत ने

कैसे नफरत के लिये तुमने चुना औरत को

इसको मै प्यार करूं इसको ही चाहत बोलुं


दर्द सब तुमने दिया तुमने उसको छोड दिया

दिल भी औरत का मुलायम था तुमने तोड दिया

मेरे हर ख्वाबों मे आती है हसीन एक औरत

अपनी हसरत भी क़्यामत की मै औरत बोलुं


सुबह सुरज की भी किरनों से निकलती औरत

शाम रंगीन फिज़ाओ मे बदलती औरत

कितने मासुम ख्यालो को बदलती औरत

मै तो औरत को मोहब्बत की निशानी बोलुं !


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