रिश्तों की पीढ़ी दर पीढ़ी
रिश्तों की पीढ़ी दर पीढ़ी
नन्ही उंगलियों को
जब तुमने थामा
चलना सिखाया
दौड़ना सिखाया
गिरने पर संभाला
दर्द के साथ जादू किया
नए नए सपनों की पहचान दी
हर आवाज़ पर सजग हुए
तब अपने होने का
खुद को पाने का सुकून मिला।
अनगिनत सपने
मैंने सिरहाने रख लिए थे,
ताकि बचा रहे बचपन
और तुम्हारा स्पर्श।।
बचपन और स्पर्श के बीच चलते हुए,
अचानक एक दिन
मैंने थाम ली तुम्हारी उंगली
तुम्हारे थके शरीर में
हकीकत से भरे
सपनों के पौधे उग आए थे
तुमने जिस तरह मुझे मुड़कर देखा,
मैं दुआओं से सुरक्षित हो गया
और तुम
तुम निश्चिंत हो गए
अपनी अंतिम यात्रा के लिए।