थकन भी गई ना
थकन भी गई ना
अभी तक थकन रात भर की गई ना
अभी तक महक भी बदन की गई ना
मैं साहिल नहीं हूँ मैं हासिल नहीं हूँ
सुकन रात की फिर ज़ेहन से गई ना
मैं कहता हूँ दुनिया भली है बुरी है
मगर अपनी हालत भी संभली कभी ना
निशाने पे मेरे है दुश्मन बुराई
मगर दोस्ती मेरी तुमसे हुई ना
बहुत चाहता हूँ कहूँ तुमको अपना
मगर अपनी आदत भी ऐसी हुई ना
किसे दिल भी चाहेगा तुम बिन हमारा
मुहब्बत के काबिल तेरे बिन कोई ना
गिला क्या करूँ ज़िंदगी आज तुमसे
कभी दिल की बातें भी तुमसे कही ना
मोहब्बत के खातिर क्यों मंज़र को जीना
कभी तुमने मुझको मोहब्बत कही ना...।