तबाह जम्हूरियत
तबाह जम्हूरियत
कब तक रहनुमा छुपाएंगे असलियत,
मुल्क नहीं है किसीकी भी मिल्कियत,
पूरी तरह से भूल गए है जो इन्सानियत,
तबाह कर चुके है लोगों की जम्हूरियत |१|
अवाम किससे कहाँ करेगी शिकायत,
ज़रा भी साफ़ नहीं है सालार की नीयत,
ख़ादिम को याद दिलानी होगी हैसियत,
के न बिगाड़े वतन की भलीचंगी तबीयत |२|