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डर

डर

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'डर' जीवन का सबसे बड़ा सच

एक दरिया,एक साहिल

और एक ही भँवर

निकल साथ उसके

सलामत तट पर

मन में प्रज्ज्वलित है

फिर से फँस जाने की कशमकश

और साथ है वही साथी

मैं,तुम और डर

वही मौसम, वही पानी

और फिर वही कहर

झूठ और बेमानी रिश्तों से भरा

फिर वही शहर

हाथ थाम कर डूब जाने की

बह जाने की कशमकश

और साथ है वही साथी

मैं, तुम और डर।


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