भीड़ से अलग
भीड़ से अलग
मुझे भीड़ से अलग चलना
अच्छा लगता है...
मुझे गिर के फिर से संभलना
अच्छा लगता है...
हर खूबसूरत फूल की हिफाज़त
करते हैं कॉंटे,
मुझे कांटों में खिलना
अच्छा लगता है...
जिन्हें आदत है छाया में बने रहने
वो घर में ही कैद रहते हैं,
मुझे तो धूप में निकलना
अच्छा लगता है...
वक्त बदल देता है उनको
जो उसके साथ नहीं चलते,
मुझे तो वक्त को ही बदल देना
अच्छा लगता है...
रोने लगते हैं लोग
तकिये में मुंह छिपा के कहीं,
मुझको तो मेरे गमों पे हंसना
अच्छा लगता है...
जोड़ ले साधन जिसे चाहिये
आराम की ज़िन्दगी,
मुझे तो अब भी नंगे पाँव चलना
अच्छा लगता है...
बंद कर लो तुम अपने
दरवाज़े खिड़कियां
तूफ़ान के डर से,
मुझे तो बूंदों का
झूम कर तन पर बरसना
अच्छा लगता है..।