वृद्धापन
वृद्धापन
आज तुम समृद्ध हो
और मैं वृद्ध
लेकिन तुम न भूलो
कल मैं भी हरा था
सारी खुशियों से भरा था
मेरे अंदर ऊर्जा का भंडार था
सारी सुविधाओ का संचार था
मैं भी इतराता था अपने यौवन पर
हँसता था दूसरों के वृद्धापन पर
मुझ पर ये पतझड़ नही आएगा
और यूँ ही समय बीत जाएगा
किन्तु ये भ्रम ज्यादा दिन
टिक नहीं पाया
और कुछ ही दिनों बाद
मुझ पर भी बुढापा आया
आज समझ आती है उनकी टीस
आज झुक जाता है शर्म से शीश
इसलिए कभी मुझको भी देख लेना
और थोड़ा सा मुस्कुरा देना
क्योंकि मैं और तुम अलग नही
जो आज मैं हूँ वो तुम कल होंगे
और जो तुम कल होंगे वो
कोई और होगा
और यह चक्र निरंतर जारी होगा।