पत्थर
पत्थर
पत्थर चाहे खदानों से निकले
या पत्थरबाजों की बस्तियों से
पत्थर स्वाभाविक रूप से
सख़्त ही होते हैं
सारे पत्थर सपाट नहीं होते
कुछ तो बड़े ही नुकीले होते हैं
जिनको लगते हैं
उनके दर्द का अंदाजा उनके अलावा
और कोई नहीं लगा सकता
“ईंट का जवाब पत्थर से
पत्थर का गोलियों से
और गोलियों का परमाणु बमों से “
पूरा विश्व इसी एक फलसफे पर
अपने विकास के यान उड़ा रहा है
चींटियां हाथी को नहीं दिखतीं
मगर चींटियों का अट्टहास
हाथी के कानों के परदे फाड़ देता है
नफरतों का प्रदर्शन अपने
धार्मिक प्रवचनों से तथा
अपनी मानसिक विकृतियों
की अभिव्यक्ति ट्विटर, व्हाट्सऐप
और फेसबुक के माध्यम से
करके हम अपनी जीवंतता
का नहीं बल्कि
मुर्देपन का ही परिचय देते हैं
कथनी और करनी में मेल
नहीं होने से हम
असंतुलित होकर डगमगाने लगते हैं
अनिश्चितता और अविश्वास पूरे कुटुंब के साथ
हमारे जीवन के भू-भाग पर फ़ैल जाते
और हम मालिक से सीधे मुहाफिज हो जाते हैं