आलिंगन या गुमशुदा
आलिंगन या गुमशुदा
पहली ग़लती पर दिल
धक-धक करता है।
पर बार-बार पेड़ काटने
पर भी मन नहीं डरता है।
अपनों के जाने पर अश्कों
से आँखें भीगती है।
पर प्रकृति के मुरझाने पर
भी दिल नहीं पसीजता है।
मन पर छाया ऐशो
आराम का डेरा है।
जाल में फंसा है कहकर
सब कुछ मेरा है।
खुद ही खुद के हालात
पर रोता है।
कोई तुझ पर रोए ऐसा
कौन अभागा है।
इस सिलसिले के अंत का
फैसला भी तुझे ही करना है।
सुकून लाना है या कहर
बरपाना है ।
तेरी बनाई लकीरों से ही
आंकना है।
हर सू खुली वादियों को
सहलाना है।
या कंक्रीट जंगलों में
सिमट जाना है।
यह तुझे ही बतलाना है।
तोते उड़ाना है या प्रकृति
का हाथ थामना है।
चाँद सूरज का साथ
निभाना है या गुमशुदा
बन जाना है।
हम सबको मिलकर
दिखाना है।