ज़िंदगी की वास्तविकता!
ज़िंदगी की वास्तविकता!
आहे! री ज़िंदगी तेरी माया,
मोह में तूने मनुष्यों को फँसाया,
समझ ना पाया कोई तेरी काया,
अचानक से हँसाकर फिर से रुलाया।
क्यों छिपी रहती तू ज़िंदगी?
दुनिया कर ले चाहे कितनी बंदगी,
घूँघट तू कभी ना उठाएगी,
अपना चेहरा कभी ना सामने लाएगी।
तू जाल अनेक बिछाए,
भले ही मनुष्य भटक जाए,
पर तू किसी के कहे में न आए,
हट पे तेरी कोई ना टिक पाए।
जो करता तुझसे प्यार,
मान लेती तू उसे अपना यार,
सहभागी उसे बनाती तू,
एक पुकार में करतब दिखाती तू।
ज़िंदगी ही करती प्यार की क़द्र,
कहती अपने प्रेमी को, रखो थोड़ा सब्र,
मैं ही ख़ुशियाँ लाऊँगी,
इंसानों की भाती दिल न दुखाऊँगी।
अगर डिंढोरा पिटेगा दुखों का अपने,
ज़िंदगी दिखाएगी ही भयानक सपने,
ज़िंदगी ना दया करती किसी पर,
गिनते जो दुखों को, बरसते उनपर दुखों के ही अम्बर।
हे मनुष्य करना सीख ख़ुद से प्यार,
तू ही स्वयं को ले जाएगा उस पार,
ज़िंदगी तुझे गले लगाएगी,
हाथों में तेरे ख़ुशियाँ अवश्य लाएगी।