खुद से जीत जाती हूँ
खुद से जीत जाती हूँ
मंज़िल की,
चाह में,
अक्सर हार जाती,
थी राह में !
अब राह ही,
मंज़िल जान लिया,
रुकना नहीं है,
ठान लिया !
अक्स ढूंढ कर
अपना खुद में,
प्रतिद्वंद्वी उसी को,
मान लिया !
ठोकर खाकर अब,
जल्दी सीख जाती हूँ,
हार कर दुनिया से,
खुद से जीत जाती हूँ !