ग़ज़ल
ग़ज़ल
1 min
244
उजालों ने चराग़ जब बुझा दिए।
जिये यहाँ पे कोई अब तो किस लिए।
हैं मुद्दतों से आपके ये मुन्तज़िर।
इन आईनों को एक पल निहारिये।
जवां रहें ये महफ़िलें ये मस्तियाँ ।
न ज़ीस्त से, न हौसलों से हारिये ।
निभा न पाई ज़ीस्त तो ममात ही।
तो आज दोस्त, ख़ुद के साथ हो लिए।
हम इश्क़ वाले यूँ कमाल करते हैं।
कि ज़ख़्मे दिल भी आँसुओं से सिल लिए।
हरेक साँस पर हैं मौत के नुक़ूश।
हयात करने को ममात चाहिये।