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पता

पता

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मेरा पता क्या है

पूछते हैं मेरे दोस्त

मेरे आका

मेरे संबंधी

वे सभी

जो कभी नहीं आएंगे मेरे घर

कभी नहीं आएगा

जिनका लिखा कोई ख़त

पूछते हैं मेरा पता

बड़े चाव से

मै बताता हूँ सोत्साह

और सोचता हूँ

बरस दो बरस बाद

जब फिर पूछेंगे वे

मुझसे यही सवाल

मेरा पता

 

तबतक

बदल चुका होगा

मेरा शहर

कोई दूसरा हो गया होगा

मेरी कर्मभूमि

कोई और हो गई होगी

बदल चुका होगा

मेरा वर्तमान

एक बार फिर से

मगर नहीं बदलेंगे वे

फिर पूछेंगे मेरा पता

मैं एक बार फिर दूँगा  

उन्हें अपना नया ठिकाना

सच पूछो तो

उनका सवाल

ठीक वैसे ही बेमानी है

जैसे मेरा पता

  

मैं

अपने पेड़ से

कब का गिरा

एक सूखा पत्ता

नहीं है अब मेरा

कोई स्थायी पता

किसी एक जगह

नहीं हूँ मैं

इसलिए संभवतः

कहीं भी हो सकता हूँ मैं

स्वयं उनके शहर और कस्बे में भी

उनका सवाल

सचमुच में मुझसे

कोई उत्तर नहीं चाहता

यह जानते हुए

और कदाचित इसलिए  

मैं उनके सवाल का उत्तर देता हूँ

सोचता हूँ

एक दिन

मैं और वे नहीं होंगे

इस दुनिया में

मगर हमारी रूहें

टकराती रहेंगी तब भी

एक दूजे से

यदा-कदा

उनकी रूह पता पूछेगी मेरा  

और मेरी रूह

पता बताएगी अपना

एक दूसरे के सवाल का जवाब देना

ज़ारी रहेगा

हमारे ज़िंदा ना रहने के बाद भी

हमें नहीं मिलना था कभी

हम नहीं मिले कभी

मगर मेरा पता तो

होना ही चाहिए था

उनके पास

वे मुझसे मतलब जो रखते थे!

वे मुझे प्यार जो करते थे!

वे जो मेरे दोस्त, आका और संबंधी ठहरे!


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