गुनाह
गुनाह
जाने अनजाने,
कितनी गलतियों पर बिन ध्यान दिए ,
करते जाते हैं लगातार।
कभी जो सोचोगे, तब जानोगे
करना होगा, सूक्ष्म विचार।
सिर्फ किसी इंसान को जान से मारना ही,
हत्या नही होता केवल
यह भी गुनाह, अपनी इंसानियत मारकर
मज़बूरो पर दिखाना अपना बल।
यह भी गुनाह, जो लोगो की बातों में आकर
कर देते हो हत्या, अपने विचारों की
हिंसक हो उठते हो, बिन लगाए अपनी अकल।
यह भी गुनाह, जो डर जाते हो बातों से लोगों की
कर देते हो हत्या, अपने सपनो अपने अरमानो की
जिन्हें पाने को इरादा था कभी अटल।
यह भी गुनाह, चुपचाप ज़ुल्म सहना किसी का
कर देते हो हत्या, अपने आत्मसम्मान की
चाहो तो सकते हो अपनी तकदीर बदल।