लफ़्ज़ों में वो बयान...
लफ़्ज़ों में वो बयान...
लफ़्ज़ों में वो बयान हो ही नहीं सकता
वो जो दर्द सहा है मैंने वो जो ज़िल्लत सही है मैंने.
किसी की कद्र करने की जो सजा मिली है मुझे
वो जो राते तड़प के गुजारी थी
वो जो दिन में आसूं सबसे छूपाने थे
वो शाम क्या बाताये तुम्हे, वो पल कैसे गुजार लिए
सच कहूँ तो यकीन मुझे खुद पर भी नही होता
वो तड़प कैसे श ली ली मैने
तुमहारी यादो ने मुझे पागल बनाया था
दे कर अपनी आदत छोड़ के जो चले गए तुम
हम पागल पागल फिरते थे..
एक पल तुझसे बात करने को सूनो अजनबी दोस्त मेरे
हम कितना तड़पे थे.. दुश्मनो को भी तरस आ जाता..
वो हाल हमारा तुम कर गए..
कितना भागी थी मै तेरे पिछे..
तुने एक नज़र भी मुड़ कर देखा नही..
ऐ ज़ालीमं तुझे क्या सच मे मेरे दर्द का अंदाजा नही..
इतने साल हो गए है
हाँ अब हम थोड़ा सा संभल गए है..
लेकिन आज भी तेरी याद मुझे तड़पाती है
हाँ बहुत तड़पाती है..
तुम अब भी मुझे तरसाते हो
तेरे जाने से ये नरम दिल लड़की पत्थर सी हो गई है
आ के एक बार देख ज़रा कितना बदल गई है
मासूमियत खो दी है इसने
भरोसा अपनो पर भी रहा नहीं
आज भी तेरी प्रोफाईल देख के खुद को बेहलाती हूँ
तू आज भी शामिल है मेरी आदतो मे
तुझे भूल पाना मेरे बस मे नही
हाँ लफ़्ज़ों में वो बयान हो ही नहीं सकता वो जो दर्द सहा है..