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S Ram Verma

Romance

5.0  

S Ram Verma

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घूर्णन गति परिक्रमण गति !

घूर्णन गति परिक्रमण गति !

1 min
339


तुम जब जब होती हो साथ मेरे

चित्त की अशुद्धियों का छय होने लगता है


तुम जब जब होती हो दूर तब त्वरित गति से

फैले प्रकाश को अंधेरा अपना आवरण उढ़ा देता है


और मेरे चारों ओर छा जाता है घुप्प अंधेरा

इस मनःस्थिति में दुख ही दुःख पीड़ा ही पीड़ा छा जाती है

 

मेरी काया के चारों ओर ऐसे में बसंत मेरे द्वार

पर खड़ा दस्तक दे रहा हो तो भी मुझे कहाँ सुनाई देता है 


जिस के फलस्वरूप बसंत बैरंग लौट जाता है

मेरे द्वार से और दो गतिओं पर घूमने वाली धरा


घूर्णन गति को त्याग परिक्रमण गति पर अटक जाती है

जिसमे नित्य की जगह वर्ष लगने लगते है


उसे अपना ऋतू चक्र बदलने में तुम ही सोचो 

कितना फर्क पड़ता है एक तुम्हारा साथ न होने पर !



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