गुलाब की सूरत
गुलाब की सूरत
उसकी सीरत गुलाब की सूरत
यूँ मेरे माहताब की सूरत।
चाँद भी रूबरू नहीं होता
ऐसी मेरे जनाब की सूरत।
उसका किरदार भी अजब यारो
किसने देखी है आब की सूरत।
एक लम्हे पे क्यों गुमाँ इतना
ज़िन्दगी है हुबाब की सूरत।
क्या ख़बर कब सफ़र ये थम जाए
देख तो लूँ जनाब की सूरत।
ज़र का वार होना चाहिए था
कोई तो यार होना चाहिए था।
तिरा इज़हार होना चाहिए था
सरे बाज़ार होना चाहिए था।
ज़माना तो फ़रेबी है, ख़बर थी
तुझे बेदार होना चाहिए था।
न हो ग़म तो ख़ुशी मुमकिन नहीं है
कोई आज़ार होना चाहिए था।
खड़े हैं वो सफ़ों में सर झुकाये
जिन्हें सरदार होना चाहिए था।
गुज़र जाते किसी भी हद से फिर हम
तिरा दीदार होना चाहिए था।