जीवन के पर्दे पर
जीवन के पर्दे पर
जीवन के पर्दे पर
हम तुम खेल रहे हैं ।
फिर जाने क्यों इक दूजे को
हम तुम ठेल रहे हैं ।।
जीवन की साँझ को ढलना है
काठ पे इक दिन जलना है ।
ये अनंतकाल का मंच नहीं
यहाँ पात्र निभा निकलना है ।।
इस लीला में भी देखो
सब निर्बल को ही ठेल रहे हैं ।
जीवन के पर्दे पर
हम तुम खेल रहे हैं ।।
फिर क्यों सबसे है प्रीत नहीं
क्यों दया की यहाँ पर रीत नहीं ।
नफ़रत की चादर ले सोते क्यों
क्यों अच्छाई की अब जीत नहीं ।।
शैतान से देखो डर कर
सब कर मेल रहे हैं ।
जीवन के पर्दे पर
हम तुम खेल रहे हैं ।।