तसल्ली
तसल्ली
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देता नहीं कोई दिल को तसल्ली
कोई भी दिल में समाता नहीं है
मिलने को मिलते है हजारों - लाखों
मगर कोई दिल को लुभाता नहीं हैं
रूठना भी अब तो हो गया है मुश्किल
कोई आगे बढ़कर मनाता नहीं है
शहर हो गया जैसे गूंगों की बस्ती
तराना प्यार का गुनगुनाता नहीं है
चलो अब पहुँच जाए आसमाँ की हद तक
जहां ये हमें अब सुहाता नहीं है