काला चश्मा
काला चश्मा
काले काँच के पेहरे को रहने दो,
आँखो को छिपाते हैं जो,
उठ गया तो टूट जाएगी मेरी और उनकी आँखो की मध्यस्थता,
मेरी इच्छा और उनकी रुढिवादी प्रथा,
उनको लगता है सुंदरता बढाने को लगाया,
पर मुझे तो सुंदर नज़ारा इसने दिखाया,
कुछ कारण संग लगाया था,
अवसर दे जो समाज देखने का,
अवसर दे जो स्वयं को जाँचने का,
यह काला ही सही रंग से अन्यायी तो नहीं,
काला ही सही रंग से उपेक्शात्मक तो नहीं,
काला ही सही रंग में कलंक निहित तो नहीं,
संभवतः काँच का परदा है तो सक्षम हैै,
यह नज़ारा दिखाता है वो काला जो मौजुद है हर छन,
कुरीतियों की रोशनी सको,
तो संकुचित मानसिकता की धूल को कभी,
बचा रहा यह परदा मुझे,
कर रहा सहायता मेरी,
पर डर है अगर टूट गया तो बिखरा देगा,
बिखरा देगा सकारत्मकता को,
फिर रंग बिरंगी सोच उलझाएंगे,
अवसर भी कुछ न कर पाएंगे,
रंग में वह भी खो जाएंगे,