'शाम'
'शाम'
दिन को अब जो लगने
लगा विराम है
दुविधा भरी आई
सुरमई यह शाम है
परदे पीछे थके हारे
मेहनतकश सूरज के
हाथों में ये नशीला जाम है
ये शाम कहो किसके नाम है
तुम्हें भला इससे क्या काम है
बचना है तो बच जाओ प्यारे
क़ातिल का काम अब तमाम है
रहीम है या कि राम है
हर कोई यहाँ बेकाम है
कवि हो कि हो कोई नेता
जिसे देखो वो बदनाम है
सीख बैठे ग़र चाटुकारिता
आगे तो आराम ही आराम है
किन गली से आते हो मियां
क्या कहते हो आराम हराम है