भद्रकाल
भद्रकाल
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जय माँ अम्बे, जय माता दी का
उद्घोष बारम्बार करते हैं,
शक्ति के उपासक हैं ये लोग
चंदन नही, रक्त भरे हाथों से
देवी का श्रृंगार करते हैं,
गर्भ की कन्याओं का जो
वंश के नाम संहार करते हैं,
यहाँ नौ देवियों की पूजा होती
सात्विक भोजन का भोग लगाते है,
अचरज होता है क्यूँ शक्ति के नाम पर
नौ दिनों का उपवास रखते हैं,
कहाँ मिलेंगी कंज के लोगों को
जहाँ गर्भ में उनका विनाश करते हैं ,
कभी मन्त्र से, कभी जाप से
कभी संताप से
नर तुमको छल रहा है,
मत आओ इस धरती पर देवी
यहाँ तो चिरस्थाई
भद्रकाल चल रहा है।