कुछ लिखना चाहूँ
कुछ लिखना चाहूँ
उन अनकहे दिल के जज़्बातों को,
उन अनछुए दिल के पहलुओं को,
जो हर सच्चे आशिक़ के दिल में समाये होते हैं,
कुछ लिखना चाहूँ !
वो सच्ची इबादत करते हैं मोहब्बत की,
वो जानते हैं तासीर मोहब्बत की,
जो हर गम को दिल में समेटे हुये होते हैं,
कुछ लिखना चाहूँ !
उन मासूम बच्चियों के रुदन को,
उन चीख़ती दफ़्न होती आवाज़ को,
जो ख़ुद की शर्तों पे जीने की ख़्वाहिश संजोये होते हैं,
कुछ लिखना चाहूँ !
तो अब क्या लिखना चाहूँ,
इंसानियत का यूँ सरेराह क़त्ल देखकर,
तो बस मालिक से इनके लिए उग्र दण्ड चाहूँ,
कुछ लिखना चाहूँ !