ग़ज़ल
ग़ज़ल
जीवन में जब प्यार न हो
तो शब्दों में फिर कैसे आए
दिल में नफ़रत घर कर ले
तो प्रेम के नगमें कौन सुनाए
सावन-भादों, मधु-ऋतु, पतझड़
सारे मौसम आते-जाते
बैठी व्याकुल सोच रही मैं
प्रेम का मौसम कब तक आए !
तन्हा-तन्हा रातें अपनी
मीठी-मीठी बातें उनकी
क्या जाने हम सोच के अपनी
आँखों में आँसू भर लाए !
जाने कितने युग में पाई थी जो इज्ज़त ग़र्क़ हुई
घर के झगड़ों को दो भाई
बाज़ारों में क्यूँकर लाए !
मुद्दत बाद मिले जब उनसे
मौसम मस्त, फ़िज़ा थी दिलकश
उसने भी ग़ज़लें कह डालीं
हमने भी कुछ शेर सुनाए !
बेटा परियाँ खाना देंगी
तुम जल्दी से सो जाओ बस
मुफ़्लिस माँ ने ऐसा कह कर
बच्चों को कुछ ख़्वाब दिखाए !
महफ़िल में तन्हा थी वो भी
गुमसुम गुमसुम, खोई-खोई उसकी एक झलक ने
'पूनम', जाने कितने दिल धड़काए !