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मुझे इंसाफ़ चाहिये

मुझे इंसाफ़ चाहिये

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मैं भारत की भूमि हूँ शर्मसार खड़ी हूँ

चींखे सुनाई देती है मुझे हर शहीद के परिवार की नश्तर सी चुभती है आवाजें

जिसे कहते हो तुम सब भारत माँ आज एक अबला सी पड़ी है

बेबस अपनी आँखों से नज़ारा देखती हर कुछ दिन बाद तमाशा मौत का

रक्त रंजीत पहनावा उतार फ़ेंका है मैंने बसंत में ये किसने होली खेल दी मेरे साथ,

किसी सुहागिन की मांग से कुम-कुम छीनकर जल रहा है तन,

हर हादसे से

रूह मेरी तार-तार होती है

मेरे नौजवानों के खून से रंगे मेरे चेहरे को न देख पाएगा कोई

लो सफेद वस्त्र लपेट लिये मैंने

शोक मनाने दो मुझे मेरे बच्चों के बिखरे तन के चिथड़ों का,

भीगे नैंनों से इन्साफ़ माँग रही हूँ क्या कोई दे सकता है

जवानों के परिवार को वापस युवा धन

जो खोया है मेरी रक्षा काज

मैं मौन बने कब तक तमाशा देखती रहूँ

मेरे ही सीने पर मेरे बच्चों की लाश का बोझ लिए

लज्जित हूँ मैं

मेरी इज़्ज़त की ख़ातिर ए शहीद की माँ माफ़ करना मुझे,

छीना तेरे बेटे को क्या बीती होगी तुझ पर,

माफ़ करना ओ विधवा शहीद की

तेरी सूनी कर माँग तेरा सुहाग छीना मेरी इज़्ज़त की ख़ातिर,

ओ सियासती शहंशाहों मेरे ज़ख्मों का इलाज करो

कुरेदकर आतंकी बार-बार हरा करते है

मिटा दो अब शैतानों को

मेरे वक्ष से भार हटा दो

हनन की हद से पार हो चुकी है मेरे जवानों के सब्र की सीमा

लांघने दो गद्दारों की दहलीज़

ले बदला मेरे बलात्कारीयों से

जो छलनी करते है एक माँ का सीना

सैनिकों के शहादत में नतमस्तक सी खड़ी हूँ कितना कर्ज़ चढ़ेगा मुझ पर

बेबस परिवारों का किससे जाकर बिनती करुँ कौन सुनेगा मेरी

कहते हो मुझे माँ अगर तो

फ़र्ज़ को अपने समझो

कब तक एक माँ खोती रहेंगी बार-बार अपने बच्चों को

बिलखती माँ की पुकार को कोई तो आकर इन्साफ़ दो

कृष्ण बनकर वध करो अब छुपे हुए कंस का

फागुन पास है खेलो होली दुश्मन के गंदे खून से

तभी प्यास बुझेगी एक तड़पती बिलखती माँ की॥


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