काला धन
काला धन
काला धन छिपा रखा था,
बरसों मिट्टी के ढेर में।
सारे नोट मिट्टी हो गये,
एक समय के फेर में।
रातों रात जब नोटबंदी का,
एलान हो गया देश में।
दौड़े-भागते खोद डाले,
वह ग़रीब के वेश में।
नोट नहीं काग़ज़ के चीथड़े,
वो भी मिट्टी में सने हुए।
यह देख भौंचक्के रह गये,
चिल्लाते रह गये सर पीटते।
ऑंखें खुल गयी उस दिन,
मोह भी धन से छूट गया।
अपना सा मुँह लेकर बेचारे,
घर को चुपचाप लौट गये।